वो खामोशिय ही कैसी जिसमें गुज़रा नहीं तुम्हारा ख्याल !
रात जब दस्तक देता है ..
एक हलकी सी ठण्ड मुझे चू जाती है
ना जाने ये कैसी बेचैनी है ..
कभी में तुम्हे सोचु ...कभी सिर्फ मुस्कुरा दू
वो रात अधूरी है जिसमें तुम ना आये !
तुम्हे सुनु या तुमे देखू?
वक़्त ऐसे गुज़रे जो चाहू बस यही थम जाये !
शब्द तुम्हारे संगीत की धुन हो
सिर्फ उनका एहसास ही मेरी ग़ज़ल है !
हातो की लकीरे भले मीट जाए
सिर्फ तुम्हारा उसमें होना ही मेरी तकदीर है
वो हसी ही क्या , जिसकी वजह तुम ना हो
वो जीवन ही क्या जिसमें तुम्हारा इंतज़ार ना हुआ हो !
-- वृषाली ड